Rigging in Maharashtra elections

Editorial: महाराष्ट्र चुनाव में धांधली के आरोपों पर आयोग का जवाब

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Rigging in Maharashtra elections

Commission response to allegations of rigging in Maharashtra elections: देश में अब किसी भी चुनाव के बाद चुनाव आयोग पर आरोप लगना आम बात हो गई है। हालात ऐसे हो गए हैं कि हारने वाले दल जनादेश को स्वीकार करने से ही इनकार कर रहे हैं। हालांकि इसके प्रमाण हासिल नहीं हो पाते कि सच में ऐसी कोताही बरती गई, जिसकी वजह से विपक्ष की हार हुई। हरियाणा में हार के बाद महाराष्ट्र में भी विपक्ष विशेषकर कांग्रेस ने ऐसे आरोप लगाए थे, जिनमें चुनाव आयोग की भूमिका पर सवाल खड़े किए गए थे।

हालांकि अब चुनाव आयोग ने फिर स्पष्टीकरण दिया है कि उस पर लगाए गए आरोप निराधार हैं। आयोग ने इस संबंध में 60 पन्नों का विस्तृत जवाब दिया है। उसके अनुसार मतदाता सूची में मनमाने ढंग से नाम जोड़े या हटाए जाने की बात सही नहीं है। आयोग का कहना है कि यह सामान्य प्रक्रिया है और नाम जोड़ने और हटाने के कार्य में राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि भी शामिल होते हैं। यह भी कहा गया है कि शाम पांच बजे के बाद हुए मतदान की तुलना अंतिम आंकड़ों से करना उचित नहीं होगा। गौरतलब है कि कांग्रेस की ओर से आरोप लगाया गया था कि राज्य में 50 ऐसी सीटें हैं, जहां पर 50 हजार मतदाताओं के नाम गलत तरीके से जोड़े गए। निश्चित रूप से आयोग की ओर से जो जवाब दिया गया है, वह तथ्य आधारित होगा और उस पर भरोसा किया जाना चाहिए।

 जाहिर है, आयोग के समक्ष ऐसे आरोप चुनौतियां है, और उनका  जवाब उसे देना ही होगा। चुनाव आयोग से ही जुड़े पूर्व अधिकारियों का कहना है कि आयोग को अपनी भूमिका को स्पष्ट करना चाहिए। उनका कहना है कि राजनीतिक दलों के लगाए आरोपों में कहीं सच्चाई हो सकती है। वैसे यह सब कवायद तब है, जब सुप्रीम कोर्ट ईवीएम को हैक किए जाने के संबंध में स्पष्ट फैसला दे चुका है कि ऐसे आरोप संदिग्ध ही कहे जाएंगे। देश की संवैधानिक संस्थाओं पर भरोसा करना ही होगा। कांग्रेस के नेताओं की ओर से विधानसभा चुनाव में हार के बाद जिस प्रकार से चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली और ईवीएम पर सवाल उठाए गए, वे वास्तव में ही बेहद दुर्भाग्यपूर्ण थे। संभव है, अगर परिणाम कांग्रेस के पक्ष में आते तो ऐसी बातें और आरोप नहीं लगाए जाते। लोकतंत्र को जीवंत और निष्पक्ष बनाए रखने के लिए भारत निर्वाचन आयोग अथक प्रयास करता है और उसकी यह संजीदगी लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में साफ प्रदर्शित होती है, लेकिन क्या यह उचित है कि उसकी भूमिका को ही अस्वीकार्य करते हुए चुनाव परिणामों को भी अस्वीकार कर दिया जाए।

निश्चित रूप से चुनाव आयोग की ओर से अब कांग्रेस नेताओं के आरोपों को अगर खारिज कर दिया गया है तो यह सही ही है। चुनाव आयोग ने हरियाणा के मामले में लगाए गए आरोपों का भी जवाब दिया था। इसमें आयोग का यह कहना बेहद गंभीर है और इसकी आशंका को बल देता है कि पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व समेत उन सभी जिम्मेदार नेताओं के बयान बेहद आक्रामक और संविधान के विरुद्ध थे। आखिर यह किस प्रकार के बयान थे, जब यह कहा गया कि पार्टी को यह जनादेश स्वीकार नहीं है।  लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी है और इसका हक प्रत्येक नागरिक को प्राप्त है।

हालांकि चुनाव में करारी शिकस्त के बाद कांग्रेस के नेताओं की ओर से जिस प्रकार के बयान सामने आए, उनसे न केवल अभिव्यक्ति की आजादी का मजाक बना, अपितु चुनाव आयोग की शुचिता पर भी सवाल उठे। आयोग ने इस संबंध में कहा था कि कांग्रेस नेताओं का अस्वीकार्य वाला बयान लोकतंत्र में अनसुना है। आयोग ने शब्दों का विशिष्ट चयन करते हुए यह भी समझाया कि किस प्रकार ऐसी टिप्पणियां वैधानिक एवं नियामक ढांचे के अनुसार अभिव्यक्ति लोगों की इच्छा को अलोकतांत्रिक तरीके से खारिज करने की दिशा में कदम है।
    वास्तव में चुनाव आयोग पर सवाल उठाना अब राजनीतिक दलों के लिए सामान्य बात हो गई है। अनेक राजनीतिक तो इसकी वकालत कर रहे हैं कि बैलेट पेपर से चुनाव को वापस लाया जाए। उनका दावा होता है कि अगर बैलेट पेपर से चुनाव हो तो सत्ताधारी भाजपा जीत न सके। इस प्रकार की बातें जनता को गुमराह करती हैं। वास्तव में राजनीति में आरोपों की सत्यता जांचने का शायद ही कोई मापदंड मिले। जब जीत मिले तो सही लेकिन हार मिले तो गड़बड़ की यह  सोच बदले जाने की जरूरत है। चुनाव आयोग की शुचिता और उसकी सत्यता पर सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं, क्योंकि उसका संबंध राजनीति से है। हालांकि होने को यह भी हो सकता है कि न्यायपालिका पर भी सवाल उठाए जाएं, लेकिन इसके परिणाम सोच कर शायद हिम्मत नहीं की जाती। दरअसल, जरूरी यह है कि सफेद को सफेद और काले को काला ही देखा जाए। ऐसा होगा तो आरोप नहीं लगाए जा सकेंगे। 

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